भारत माँ पर आये दिन आतंक रूपी मुसीबत आ जाती है,
और पापा की सारी छूट्टी एक फ़ोन खा जाती है !
दिन हो या रात पापा झट से वर्दी पहन हो जाते हें तैयार,
और छोड़ जाते हें आँखों में हमारे पुनःमिलन की अश्रू-धार !
देख हम सबको पापा कहते हें जल्दी वापस आऊँगा,
जाता हूँ सरहद पर अभी दुश्मनों को भगाऊंगा !
घर के मुख्य द्वार तक आते-आते सबकी आँखें हो जाती है नम,
और भरे गले से कहते पापा अब चलते हें हम !
माँ आगे बढ़कर पापा के पद-चिन्ह मिट्टी माथे से लगाती है,
फिर दादी कहती “आ जाएगा जल्दी” तुम क्यूँ इतना घबराती है !
फिर हम सब वापस घर में आकर चुपचाप अपने निज कमरे में जाते हें,
जिसे रोक रखा था एक पहर से मन भर उसे बहाते हें !
मै रो रहा था दादा जी आये मुझे समझाए,
जाना पड़ता है पापा को जब ख़तरा माँ भारत पर मंडराए !
उस दिन के बाद फिर मै कभी नहीं रोया,
पापा देश सेवा में रत हें ये हीं सोच हर रात सोया !
एक दिन सुबह में फोन आया पूरे घर में सन्नाटा छाया,
मालूम हुआ पापा शहीद हो गए भारत माँ की सेवा में,
मै भी चखूंगा देख लिया है मीठास बड़ी इस मेवा में !
जय हिन्द !
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