गांधी नहीं, नेताजी ने भारत को स्वतंत्रता दिलाई, जीडी बख्शी की किताब में दावा
तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा – नेताजी सुभाष चन्द्र बोस।
बहादुर! वाक्पटु! सशक्त! मुखर! आशावादी! उत्साहित! यह शब्दावलियां मेजर जनरल (डॉ) गगनदीप बख्शी एसएम, वीएसएम (सेवानिवृत्त।) के व्यक्तित्व का वर्णन करती हैं । उनकी पथप्रवर्तक नवीनतम पुस्तक BOSE: AN INDIAN SAMURAI (A Military Assessment of Netaji and the INA) एक सैन्य नेता के रूप में नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर पहली संरचित और पेशेवर आकलन है।
विनीता अग्रवाल, मुंबई से एक स्वतंत्र लेखक और कवि, जिन्होनें जनरल बख्शी की किताब की समीक्षा की, कहती हैं, “जनरल बख्शी अपनी पुस्तक में वर्णन करतें हैं कि कैसे और क्यों अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा… इंडियन नेशनल आर्मी यानि आज़ाद हिंद फौज़ ने सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में अंग्रेजी राज के ताबूत में आखिरी कील ठोकने का कार्य किया। पुस्तक में वर्णित स्वतंत्रता के युद्ध में विस्तार से साबित होता है, कि आज़ाद हिंदी फौज़ ने ही वस्तुतः भारत को स्वतंत्रता दिलाई।”
यहां श्रीमती मानोषी सिन्हा, प्रधान संपादक My India My Glory Blogazine के द्वारा मेजर जनरल बक्शी के साथ साक्षात्कार का एक अंश प्रस्तुत है।
1. कृपया अपनी किताब BOSE: AN INDIAN SAMURAI (A Military Assessment of Netaji and the INA) के बारे में कुछ प्रकाश डाले।
मेरी किताब में एक सैन्य नेता के रूप में नेताजी सुभाष चंद्र बोस और वास्तव में भारत के प्रथम सुप्रीम कमांडर का मूल्यांकन किया गया है। नेताजी ने भारत को स्वतंत्रता दिलाने में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह द्वितीय विश्व युद्ध और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आज़ाद हिंद फौज़ के सैन्य प्रदर्शन और उसके फलस्वरूप पड़ने वाले प्रभाव का मूल्यांकन करने का पहला पेशेवर प्रयास है।
इस पुस्तक में आज़ाद हिंद फौज़ द्वारा लड़े गये हर युद्ध का विस्तार से वर्णन किया गया है। आज़ाद हिंद फौज़ ही वह प्राथमिक उत्प्रेरक है जिसने 1946 के सैन्य विद्रोहों को जन्म दिया जिसके फलस्वरूप अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने पर बाध्य होना पड़ा।
2. किस कारण से आप नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर एक किताब लिखने को प्रेरित हुये?
नेताजी राष्ट्रवाद का एक प्रतीक हैं। आज हमें उनकी देशभक्ति की तीव्र भावना को पुनर्जीवित करने की जरूरत है। हमें अपने सशस्त्र बलों में उनकी प्रेरणादायी कार्यप्रणाली को लागू करने की जरूरत है। इसलिए हमारे स्वतंत्रता संग्राम में आज़ाद हिंद फौज़ की युद्ध प्रभावशीलता और भूमिका के अध्ययन की आवश्यकता है।
3. आपने कितना समय BOSE: AN INDIAN SAMURAI (A Military Assessment of Netaji and the INA) को लिखने के लिए लगाया?
असल में, मैं कई वर्षों से इस पर काम कर रहा था। मैंने इस विषय पर अध्ययन शुरू किया जब मैं 1983 में स्टाफ कॉलेज में था। प्रमुख लेखन कार्य पिछले दो वर्षों में पूरा किया गया। बाकी समय शोध, अनुसंधान, विशेषज्ञों से विचार विमर्श और नेताजी के पूर्व सहयोगियों और रिश्तेदारों के साथ बातचीत में लगा।
4. नेताजी पर इस कोण से प्रकाश डालने वाली पुस्तक लिखना कोई आसान काम नहीं है। क्या इस किताब के लिए शोध एक चुनौतीपूर्ण काम था?
निश्चित रूप से! हालांकि, यह भी सत्य की खोज की एक आकर्षक यात्रा थी। नेताजी ने एक बेहद आकर्षक और अति रोमांचक जीवन जिया। उनके कारनामे शानदार और कल्पना से परे थे। नेताजी पर अधिकांश शोध, पुस्तकें तथा अन्य सामग्री उनकी मृत्यु पर ध्यान केंद्रित करते हैं। मैंने वह कैसे जिये और लड़े और कैसे उन्होनें भारत को स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इस पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की है। नेताजी आज भी एक जबरदस्त प्रेरणादायक व्यक्तित्व हैं जिन्हें आज तक इतिहास में उनकी सही जगह नहीं दी गयी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को फिर से लिखा जाना चाहिए।
5. यह पहली बार है कि किसी भी लेखक ने अपनी पुस्तक में विस्तार से 1946 की घटनाओं की पड़ताल की है। आपने अपनी पुस्तक में यह वर्णन करके इतिहास रच दिया है। क्या आप हमें इस बारे में कुछ बता सकते हैं?
1946 की घटनाओं, विशेष रूप से रॉयल इंडियन नेवी और ब्रिटिश भारतीय सेना में विद्रोहों को मेरी किताब में बहुत विस्तार से वर्णित किया गया है। यह पुस्तक ब्रिटिश सूत्रों को ही उद्धृत करते हुये साबित करती है कि इन विद्रोहों ने ही मुख्य रूप से अंग्रेज़ों को इस तरह से जल्दबाजी में भारत छोड़ने के लिए मज़बूर किया जबकि महज दो साल पहले ही ब्रिटेन ने द्वितीय विश्व युद्ध जीता था। यह विद्रोह मुख्य रूप से आज़ाद हिंद फौज़ के फौज़ियों पर चलाये गये अन्यायकारी मुकदमों द्वारा प्रेरित थे।
6. नेताजी पर अापकी पुस्तक भारत की स्वतंत्रता पर एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक बहस को फिर से खोलने का प्रयास है। आपकी किताब का दावा है कि गांधी नहीं, नेताजी ने भारत को स्वतंत्रता दिलायी। कृपया इस पर कुछ प्रकाश डालें।
इतिहासकारों के एक वर्ग ने निहित स्वार्थों और शासकों के लिये अपनी स्वामीभक्ति दिखाते हुये पूरी तरह से यह साबित करने की कोशिश की है कि भारत ने अपनी स्वतंत्रता अहिंसा और सत्याग्रह के रास्ते से प्राप्त की थी और बल और हिंसा की उसमें कहीं कोई भूमिका नहीं थी। यह एक बहुत बड़ा झूठ या यूँ कहिये कि इतिहास के साथ खिलवाड़ है। आज़ाद हिंद फौज़ के आधिकारिक इतिहास के अनुसार फौज़ में कुल 60,000 जवान और अधिकारी थे। इनमें से 26,000 स्वतंत्रता के लिये युद्ध में मारे गए थे। क्या यह अहिंसा थी?
अफ़सोस की बात है कि नेहरूवादी व्यवस्था ने इन शहीदों को कोई अहमियत नहीं दी और गद्दार के रूप में प्रचारित किया। इन 26,000 शहीदों के लिए कोई स्मारक नहीं है। आज़ाद हिंद फौज़ के दिग्गज अधिकारी व जवानों को सेना में वापस (माउंटबेटन की सलाह पर) नहीं लिया गया और उनकी युद्ध के समय पेंशन से भी इनकार कर दिया गया। कोई भी राष्ट्र, जो अपने 26,000 सैनिकों की शहादत को भुला देना चाहता है वह अपनी राष्ट्रीयता का आधार क्षीण करता है।
सारी समस्या नेेहरू और सहयोगियों द्वारा अपने शासन की राजनीतिक वैधता के लिए खोज से पैदा हुई। यह दावा किया गया है कि अहिंसक संघर्ष ने ही भारत को औपनिवेशिक दासता से मुक्त कराया और इस तरह सेे उन्हीं लोगों को शासन करने का यह अधिकार स्वतः ही मिला। यह नेताजी और आज़ाद हिंद फौज़ की भूमिका को दफनाने का एक वीभत्स प्रयास और इतिहास का एक जानबूझकर किया गया विरूपण था। नेहरूवादी व्यवस्था और चाटुकारों ने नेताजी और आज़ाद हिंद फौज़ के योगदान को नगण्य साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
7. आप नेताजी बोस के अंत के बारे में असली सच्चाई के उजागर होने के विषय में निराशावादी हैं। इसका क्या कारण है?
अंत में नेताजी बोस को क्या हुआ यह एक अंधेरेे में डूबा रहस्य है। मैं इस बारे में असली सच्चाई के उजागर होने के विषय में निराशावादी इसलिये हूं क्योंकि कई महत्वपूर्ण भारतीय फ़ाइलों को नष्ट कर दिया गया है। उनकी विरासत को जानबूझकर दफना दिया गया और नेताजी तथा आज़ाद हिंद फौज़ की सच्चाई को जनमानस से छिपाया गया। यह सब नेहरू शासन को वैद्धता देने के लिये हुआ।
8. नेताजी के अंत के बारे में सच्चाई का पता लगाने के लिए क्या कोई भरोसेमंद सूत्र हैं और क्या हम यह पता लगा सकते हैं?
पूरा सच प्राप्त करने के लिए, हम रूसी, जापानी और ब्रिटिश अभिलेखागारों और पुरानी फ़ाइलों के उपयोग की जरूरत है। मैंनें बहुत सूत्रों और सूचनाओं का विश्लेषण किया है जिससे ऐसे कई डरावने अनुमान लगाये जा सकते हैं कि आखिर में उस महान हस्ती का क्या हुआ जिसने वास्तव में हमें आज़ादी दिलायी।
9. आप अपनी पुस्तक के माध्यम से पाठकों को क्या संदेश देना चाहेंगे।
आज भारत को एक राष्ट्र के रूप में नेताजी के बारे में सच का सामना करने की जरूरत है। बोस भारतीय राष्ट्रवाद के प्रतीक थे। आज, हमें अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर भारत में चल रही राष्ट्रविरोधी साज़िश की पृष्ठभूमि में उनकी विरासत को पुनर्जीवित करने की जरूरत है। देशद्रोह और विश्वासघात भारत में पनप रहा है। यही कारण है कि हमें बोस के प्रबल राष्ट्रवाद को पुनर्जीवित करने की जरूरत है।
विनीता अग्रवाल के शब्दों में- “जनरल बक्शी ने अपनी पुस्तक में नेताजी की भारतीय राष्ट्रवाद के प्रतीक के रूप में पुष्टि की है और साबित किया है कि स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में उनकी वास्तविक भूमिका को और नकारा नहीं जा सकता। पुस्तक पिछली सदी के सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली भारतीयों में से एक को उनकी ओर से विनम्र श्रद्धांजलि है। जिन लोगों ने बोस की विरासत का सफाया करने की कोशिश की और उनके योगदान को मिटाने की कोशिश की उनके और उनका साथ देने वाली ताकतों के खिलाफ यह एक मजबूत आवाज है। जनरल बख्शी नेताजी को पहले भारतीय सुप्रीम कमांडर, महायोद्धा और देशभक्तों के हृदय पर राज करने वाला व्यक्तित्व बताते हैं और हम सबको उन पर गर्व करने का कारण देते हैें।”
मेजर जनरल बक्शी के बारे में
मेजर जनरल बक्शी एक प्रसिद्ध और उम्दा लेखक हैं और सैन्य तथा गैर-सैन्य विषयों पर 35 पुस्तकें लिख चुकें हैं। उन्होंने कई प्रतिष्ठित शोध पत्रिकाओं और राष्ट्रीय समाचार पत्रों में 200 से अधिक लेखों का योगदान दिया है।
मेज़र जनरल (डॉ) जीडी बक्शी ने जम्मू कश्मीर राइफलस् में कमीशन प्राप्त किया था और वह नियंत्रण रेखा पर कई झड़पों और कार्यवाहियों में अग्रणी रूप से शामिल रहे। उन्हें जम्मू-कश्मीर और पंजाब में आतंकवाद से निपटने का खासा अनुभव है। किश्तवाड़ में सैन्य कार्यवाही के संचालन के लिए सेना पदक और कारगिल में आपरेशन में एक बटालियन की कमान संभाल कर उत्क्रष्टता दिखाने के लिये विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया गया। मेजर जनरल (डॉ) गगनदीप बख्शी ने सैन्य संचालन महानिदेशालय में दो कार्यकालों में कार्य किया। वह उत्तरी कमान के पहले BGS (आईडब्ल्यू) थे, जहां उन्होंने सूचना युद्ध और मनोवैज्ञानिक आॅप्स पर कार्य किया। एक सैन्य विश्लेषक के रूप में वे विभिन्न टीवी टॉक-शो पर नियमित रूप से बुलाये जाते हैं । वे भारतीय सैन्य समीक्षा के संपादक भी हैं।
This interview has been translated from English to Hindi by Yogaditya Singh Rawal.