रानी पद्मावती की सच्ची कहानी जो आपको पता होनी चाहिए

रानी पद्मावती

रानी पद्मावती! वह सौंदर्य की आत्मा थी। उनकी खूबसूरती देश देशांतर में प्रसिद्ध थी। उनकी बुद्धिमत्ता और साहस की कोई सीमा नहीं थी। वह अपने बलिदान के लिए अनंत काल के लिए अमर हैं।

 

दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल के दौरान मेवाड़ एक मजबूत राजपूत राज्य था। मेवाड़ के राजा राणा रतन सिंह थे। चित्तौड़ किला मेवाड़ का रक्षा कवच था। 700 एकड़ जमीन में फैला यह किला समय और हमलों के खिलाफ मजबूती से खड़ा रहा है!

 

रानी पद्मावती मनोहरगढ़ के राजा सम्मान सिंह जी पंवार की बेटी थी। राजा ने अपनी बेटी के लिए एक स्वयंवर की व्यवस्था की। राणा रतन सिंह ने मलखान सिंह (एक छोटे से पड़ोसी राज्य के राजा), को हराने के बाद स्वयंवर समारोह में पद्मावती से शादी कर ली थी। रानी के पास हीरामणि नाम का एक बोलने वाला तोता था।

 

अलाउद्दीन खिलजी ने अपने ससुर और चाचा जलालउद्दीन खिलजी की हत्या करने के बाद अपने आप को दिल्ली का सुल्तान घोषित कर दिया था। उसने रानी पद्मावती के सौंदर्य के बारे में बहुत कुछ सुना था। वह रानी को हर हाल में पाना चाहता था। जनवरी 1303 में, अलाउद्दीन खिलजी ने एक विशाल सेना के साथ चित्तौड़ पर चढ़ाई कर दी। किले की मजबूत रक्षा व्यवस्था देखकर वह बहुत निराश हुआ।

खिलजी की सेना की ताकत देखकर राणा रतन सिंह लड़ाई से बचने के उपाय सोचने लगे। तभी अलाउददीन खिलजी राजा को संदेश भेजा कि वह अपनी सेना के साथ दिल्ली लौटेंगे अगर वो रानी पद्मावती की एक झलक की अनुमति दे।

 

बुद्धिमत्ता पद्मावती एक शर्त पर सहमत हुई कि खिलजी केवल एक आईने में उनकी प्रतिबिंब देख सकते है। अलाउद्दीन खिलजी सहमत हुए। वह अपने विश्वस्त जनरलों के साथ आये। आईने में पद्मावती की प्रतिबिंब देखकर खिलजी हक्का-बक्का हो गये। जितना सुना था रानी पद्मावती उससे भी ज्यादा सुंदर थी। रानी को अपनाने की इच्छा और ज्यादा मजबूत हुई।

 

अपनी बात रखते हुए अलाउद्दीन खिलजी अपने शिविर की ओर रवाना हुए। रतन सिंह खिलजी को किले के फाटक तक छोड़ने गए। फाटक पहुंचते ही खिलजी ने छल से रतन सिंह को ब‌ंधक बनाकर अपने शिविर ले गये और वहां उन्हें कैद कर लिये। वह चित्तौड़ किले में संदेश भेजा ओर राजा के बदले में रानी पद्मावती की मांग की।

 

बुद्धिमत्ता पद्मावती ने एक योजना तैयार की। वह खिलजी के पास एक दूत भेजा और कहा कि वह पालकी में अपने सहेलीयों और नौकरानियों के साथ सुबह शिविर तक पहुंच जायेंगे। अगले दिन सुबह रानी ने दो प्रमुख जनरल गोरा और बादल के साथ कई सैनिकों को खिलजी के शिविर जाने के लिए तैयार किये। 

 

हथियार सहित महिलाओं के वेश में कुछ सैनिक पालकीओं में बैठे और बाकी 200 पालकीओं के पदाधिकारियों की भूमिका में खिलजी के शिविर की ओर चल दीये। शिविर में पहुंचते ही राणा के सैनिकों ने हमला बोला और अपने राजा को कैद से रिहा किया। इस मुठभेड में दोनों पक्ष के कई सैनिक मारे गये। राणा रतन सिंह को बचाया गया। राजा चित्तौड़ किला सुरक्षित पहुंच गये।

 

क्रोधित अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ किले को चारों और से घेर लिया। राणा रतन सिंह अपने सैनिकों को किले के सभी फाटक बंद रखने को आदेश दिया। खिलजी के सैनिक चित्तौड़ किला के मजबूत दीवारों को नहीं तोड़ पाए। 

 

यह सिलसिला आठ महीने तक चली (जनवरी से अगस्त तक)। किले में संग्रहित खाद्य वस्तु सब ख़त्म हो गए थे। 26 अगस्त, 1303 पर, रतन सिंह अपनी सेना के साथ केसर पगड़ी धारण करते हुए दुश्मनों के खिलाफ आत्मघाती हमले किए। लड़ाई में रतन सिंह सहित सारे सैनिक मारे गए।

 

किले के अन्दर पद्मावती के आदेश के अनुसार एक विशाल चिता जलाया गया। रानी पद्मावती और उनके साथियों, क्रूर दुश्मन के हाथों से बचने और अपने सम्मान को बचाने, चिता में कूद गये। उनके जौहर प्रदर्शन अपने आत्मसम्मान  हेतु बलिदान था। 

 

खिलजी और उनके सैनिक जब किले के अन्दर आये, उन्हे केवल राजपूत महिलाओं के शव की राख की सामना हुई।

 

पद्मावती और उनके साथियों की सर्वोच्च बलिदान को हमारी श्रद्धांजलि!

 

Padmavati with parrot image source: भारतकोश

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Manoshi Sinha is a writer, history researcher, avid heritage traveler; Author of 8 books including 'The Eighth Avatar', 'Blue Vanquisher', 'Saffron Swords'.
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