१९७१ का श्रीनगर का वायु युद्ध, मेजर जनरल श्री GD Bakshi के शब्दों में
१९७१ का “श्रीनगर का वायु युद्ध”! यह युद्ध कैसे शुरू हुआ और कैसे पाकिस्तान ने भारतीय वायुसेना को जमीन पर अपंग करने के लिए इजरायली शैली की योजना बनाई थी। इस युद्ध में भारतीय वायु सेना (आईएएफ) की क्या जबरदस्त भूमिका थी। इन सब बातों की संक्षिप्त पृष्ठभूमि देती है “श्रीनगर का वायु युद्ध” डाक्यूमेंट्री फिल्म। इस फिल्म का हिंदी संस्करण 15 अगस्त को एपिक चैनल द्वारा शाम को ३, ६, ८.३० और १०.३० बजे स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या में प्रसारित किया गया था।
रिटायर्ड मेजर जनरल श्री GD Bakshi की दमदार जुबान में: “हमने पाकिस्तान को दो में तोड़ दिया और दुश्मन की एक राजधानी ढाका पर चढ़ाई की। हथियारों की ताकत के साथ एक नया राष्ट्र राज्य बनाया गया। 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया। यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा सामूहिक आत्मसमर्पण था।”
यह वृत्तचित्र श्रीनगर में हुई वायु कार्रवाई पर केंद्रित है। उस हवाई क्षेत्र में राडार नहीं था। और संयुक्त राष्ट्र समझौते के कारण कोई लड़ाकू विमान भी स्थित नहीं था। एक बार युद्ध शुरू होने के बाद, बचाव के लिए अंबाला से चार Gnats विमान उड़ाकर लाये गये। इन्हें Sqn Leader Pathania, Flt Lts Boppaya, Ghumman और युवा और निडर Flying Officer NS Sekhon उड़ा रहे थे। एक भारतीय खुफिया एजेंट ने पाकिस्तानी एयर मुख्यालय में सफलतापूर्वक प्रवेश किया और हमलों की तारीख और समय के बारे में जानकारी दी। भारतीय वायुसेना तैयार थी और उसी रात कैनबरा बमवर्षकों से जवाबी कार्रवाई की। नौ पाकिस्तानी हवाई क्षेत्रों के खिलाफ 23 मिशनों को अंजाम दिया। भारतीय लड़ाकू हमलावरों की इस लहर के बाद अगली सुबह, हंटर, मिग 21, SU-7s इत्यादि ने पश्चिम और पूर्वी पाकिस्तान के वायु ठिकानों को रौंद दिया। इसके बाद अगले 13 दिनों में, भारतीय वायुसेना ने बांग्लादेश के आसमान पर कब्ज़ा कर लिया।
इस वायु युद्ध की शुरुआत कैसे हुई? ३ दिसम्बर की शाम लगभग ०५:४० बजे पाकिस्तान वायुसेना ने आगरा सहित उत्तर-पश्चिमी भारत के ११ वायुसेना अड्डों पर हमले कर दिये। इन हमलो के पीछे इज़्रायल के अरब-इज़्रायली छः दिवसीय युद्ध में आपरेशन फ़ोकस की विजय की प्रेरणा थी। अंतर यह था की उस हमले में बड़ी संख्या में इज़्रायली लड़ाकू वायुयान भेजे गये थे। भारत के इस हमले में पाकिस्तान वायुसेना ने ५० से भी कम वायुयानों का इस्तेमाल किया था। और उसी रात इसी हमले की जवाबी कार्रवाई की भारतीय वायुसेना ने।
पाकिस्तान को अच्छी तरह से पता था कि श्रीनगर हवाई अड्डे का बचाव कैसे किया जा रहा है; उसने इस अड्डे को मानचित्र से मिटा देने की योजना तैयार की।इस युद्ध के हर दिन पाकिस्तान ने इस हवाई अड्डे को बार-बार हमलों से क्षतिग्रस्त करने की कोशिश की। परन्तु जो भी क्षति होती था भारतीय वायुसेना उसे जल्दी मरम्मत करती थी और जवाबी कार्रवाई में हज़िरा और कारगिल में पाकिस्तानी सेना के पोस्ट पर जवाब़ी हमले किये। पाकिस्तानी चौकियों और प्रतिष्ठानों पर नैट और वैम्पायर विमानों से भारतीय वायुसेना ने तबाही मचा दी।
श्रीनगर एयरफील्ड पर अगले पाकिस्तानी हमले में, स्क्वाड्रन लीडर पठानिया ने एक सेबर को गंभीर रूप से क्षति पहुंचाई। यदि उनकी गन एन वक्त पर नाकाम न हुई होती तो सेबर पाकिस्तान वापस नहीं पहुँच पाता। पाकिस्तानी वायुसेना के 26 ब्लैक स्पाइडर स्क्वाड्रन के विंग कमांडर शर्बत अली चंगेज़ी को एक जवाबी हवाई हमला करने के लिए तैनात किया गया। चंगेज़ी की योजना यह थी कि चार सेबर हवाई क्षेत्र पर 500 पाउंड बम और तोपों से हमला करेंगे, जबकि दो उसी क्षेत्र में भारतीय विमानों को चुनौती देने के लिए उड़ान में रहेंगे। हमला शुरू हुआ। एकमात्र चेतावनी जो मिलती थी हवाई अड्डे में, वह डोडा सीमाओं में ग्राउंड OPs से थी। फ्लाईट लेफ्टिनेंट घुम्मन उड़ान भर चुके थे जब हवाई क्षेत्र पर भयंकर हमला हुआ। चारो तरफ गिरते बम और भयानक गोलीबारी के बीच Flying Officer NS Sekhon ने टेक ऑफ किया।
फ्लाइंग अॉफिसर एन एस सेखों ने करारा जवाब दिया। पाकिस्तानी ६ थे और भारतीय १। यह एक अद्भुत उपलब्धि थी। इस हमले में सेखों ने बहादुरी दिखाते हुए २ पाकिस्तानी Sabres गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर दिये और उन्होंने 3 Sabres को सीमा पार भागने के लिए मजबूर किया। ऐसे में २ सेबर जिनको उन्होंने नहीं देखा था, अचानक ऊपर की तरफ से उड़ते हुए हमला किया। सेखों का विमान गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गया। उन्होने स्वयं को निष्कासित करने की कोशिश की, लेकिन अपने पैराशूट को खोलने के लिए वक़्त बहुत कम था और वे शहीद हो गए। उपर्युक्त वीरता और बहादुरी के लिए सेखों को परमवीर चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किया गया। वायु युद्ध के इतिहास में उनकी वीरता, कौशल और साहस की एक अद्वितीय उपलब्धि बनी हुई है।
“श्रीनगर का वायु युद्ध” आदित्य होराइजंस प्रोडक्शंस के आदित्य बक्षी की “भारत की प्रसिद्ध लड़ाइयों” की श्रृंखला में तीसरा वृत्तचित्र है। उन्होंने १९६५ भारत-पाकिस्तान युद्ध के साथ यह श्रृंखला शुरू किया था। पिछले साल, “किलर स्क्वाड्रन”, इस श्रृंखला का दूसरा भाग रिलीज़ किया था जो की १९७१ के युद्ध के दौरान कराची हार्बर पर भारतीय नौसेना के शानदार हमले पर आधारित है।
इस वृत्तचित्र में 2 डी और 3 डी एनीमेशन और वीएफएक्स प्रभाव का शानदार ढंग से इस्तेमाल किया गया है जिससे हवा के दृश्यों को चित्रित किया जा सकता है और हवाई युद्ध को बेहतरीन तरह से दिखाया गया है। वृत्तचित्र मनोरंजक और दर्शकों को बांधने वाला है, यह भारत में लड़ाकू फिल्मों / वृत्तचित्रों की शैली में एक नया आयाम स्थापित करता है। इस फिल्म की पटकथा और कमेंट्री मेजर जनरल (डॉ) GD Bakshi (retd) का योगदान है। कई प्रतिभाशाली सेना और वायुसेना के दिग्गजों AVM Jindal (retd) , Col Anil Bhat VSM, Col Bhatia और Wg Cdr Prafulla Bakshi ने बहुत ही ठोस भूमिकाएं निभाई हैं। 1965 और 1971 के युद्धों के लड़ाकू नायक Wg Cdr Vinod Neb, Vir Chakra ने इस हवाई मुकाबले पर अपने बहुमूल्य विचार रखे हैं।
नयी पीढ़ी को भारतीय वायुसेना के गौरवशाली क्षणों के बारे में बताने का यह एक सराहनीय प्रयास हैं।
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Manoshi Sinha is a writer, history researcher, avid heritage traveler; Author of 8 books including 'The Eighth Avatar', 'Blue Vanquisher', 'Saffron Swords'.