१८ गोलियों से जख्मी Digendra Kumar ने तोलोलिंग चोटी पर तिरंगा फहराया, कारगिल युद्ध में
इंडियन आर्मी के इस कोबरा को कौन नहीं जानता! १२ जून १९९९ को दोपहर ११ बजे का समय था। द्रास इलाके की तोलोलिंग पहाड़ी में १५,००० फीट की ऊंचाई पर स्थित पॉइंट ४५९० था रणभूमि। भारतीय सेना अब तक इस पॉइंट पर कब्जा करने के ३ असफल प्रयास कर चुकी थी। इस प्रयास में ५९ सैनिक शहीद हो चुके थे । कारगिल युद्ध में सबसे महत्वपूर्ण काम तोलोलिंग पहाड़ी के पॉइंट ४५९० की चोटी पर कब्जा करना था।
यहाँ तक पहुँचने के लिए दो राजपूताना रायफल्स के नायक ३० साल के Digendra Kumar अपने साथी और सैन्य साज सामान के साथ बिलकुल सीधी पहाड़ी पर चढ़ते हुए अनेको परेशानी झेलनी पड़ी थी। इस विकट और दुर्गम पहाड़ी रास्तें पर चढ़ना मौत से लड़ने के बराबर है। पहाड़ी रास्ते पर कील ठोकते हुए और रस्से को बांधते हुए दिगेंद्र कुमार अपने साथियो के साथ उचाईयों की तरफ बढ़े थे। उनके साथ थे मेजर विवेक गुप्ता, सूबेदार भंवरलाल भाकर, सूबेदार सुरेन्द्र सिंह राठोर, लांस नाइक जसवीर सिंह, नायक सुरेन्द्र, नायक चमनसिंह, लांसनायक बचनसिंह, सी.ऍम.एच. जशवीर सिंह, एवं हवलदार सुल्तान सिंह नरवारिया। इन सब ने १० जून १९९९ की शाम को चढ़ाई शुरू की थी और १४ घंटे की कठोर चढ़ाई के बाद वे रणभूमि पहुंचे थे। दिगेंद्र कुमार का साहस कारगिल की बर्फ को भी पिघला सकता था ।
Digendra Kumar की तोलोलिंग पहाड़ी के पॉइंट ४५९० में जाने से पहले जनरल मलिक से पॉइंट ४५९० को मुक्त कराने की योजना के विषय में बातचीत की एक झलक :- ( सभी सैनिको ने अपने अपने बनाए हुए प्लान जनरल को बताये जो कि जनरल को सही नहीं लगे थे; तब दिगेंद्र कुमार ने अपना बनाया हुआ प्लान सभी सैनिको को बताया)
दिगेंद्र कुमार: “सर, मेरे पास जीत का एक पक्का प्लान है।”
जनरल मलिक: “बताओ।”
दिगेंद्र कुमार: “हम पहाड़ी की ओर बिलकुल सीधा रास्ता लेंगे।”
जनरल मलिक: “इस रास्ते पर तो मौत निश्चित है।”
दिगेंद्र कुमार: “मौत तो वैसे भी निश्चित है, मैं संभाल लूंगा। १०० मीटर का रूसी रस्सा जो १० टन वजन झेल सके और रूसी कीलों की सहायता से इस पहाड़ी पर चढ़ा जा सकता हैं।”
Digendra Kumar का हौसला इतना बुलंद और निडर था कि उनकी हुंकार पाकिस्तानियों की नीन्दें उड़ा सकती थी।
पाकिस्तानी सेना ने तोलोलिंग पहाड़ी की चोटी पर ११ बंकर बना रखे थे। भारतीय सेना के अब तक १० सैनिक वहाँ पहुँच चुके थे। दिगेंद्र कुमार ने पहला बंकर उड़ाने की ठान ली और बाकी के ९ सैनिकों ने एक एक बंकर उड़ाने की सौगंध खाई। ११ वी बंकर को उड़ाने का जिम्मा भी दिगेंद्र कुमार ने लिया। पाकिस्तानी सेना की गोलीबारी के बीच भी Digendra Kumar पहला बंकर उड़ाने में कामयाब रहे थे।
इस टुकड़ी पर पाकिस्तानी सैनिको ने पीछे से आर्टिलरी द्वारा फायरिंग शुरू कर दी। दिगेंद्र और उनके साथियो ने भी तीव्रता से गोली चलाई लेकिन वे आगे बढ़ने में असमर्थ रहे। धुंआधार फायरिंग से दिगेंद्र बुरी तरह घायल हो गए थे। तीन गोलियाँ छाती में, एक पैर में और उनके ऊपरी शरीर में १८ गोलियां लगी थीं। उनके एलएमजी भी उनके हाथों से गिर गई थी। रक्त ज्यादा न निकले यह सोचकर उन्होंने अपने घाव को बैंडेज किया और आगे बढ़ने लगे।
सुबेदार भंवर लाल भकर, लांस नायक जसवीर सिंह, नायक सुरेंद्र,और नायक चमन सिंह तब तक शहीद हो गए थे। सिर्फ एक ही बंकर को तब तक उड़ाया गया था। Digendra Kumar ने लांस नायक बचन सिंह से एक पिस्तौल और सुल्तान सिंह से एक ग्रेनेड लिया। तभी मेजर विवेक गुप्ता को सिर में एक गोली लगी और वे शहीद हो गए। दिगेंद्र ने अन्य बंकरों में हथगोले फेंके, वे सभी बंकरों को सफलतापूर्वक नष्ट करने में कामयाब रहे। दिगेंद्र ने कुल १८ ग्रेनेड फेंके थे । तभी पाकिस्तानी सेना के मेजर अनवर खान दिगेंद्र की तरफ आने लगे तब दिगेंद्र के पास केवल एक गोली थी। उन्होंने खान को गोली मार दी। खान को चोट लगी पर वो आगे बढ़ते रहे। दिगेंद्र ने अपने पिस्तौल से फायर करने की कोशिश की, लेकिन गोली नहीं थी। वे जल्दी से अनवर खान की तरफ कूदे और ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाते हुए उसका सिर काटने में कामयाब रहे।
बुरी तरह घायल दिगेंद्र पहाड़ी की चोटी पर लड़खडाते हुए चढे और पहाड़ी की चोटी पर कब्जा कर लिया। १३ जून १९९९ को सुबह चार बज रहे थे,उन्होंने वहां भारतीय तिरंगा झंडा गाड़ दिया।
केवल अपने साहस के दम पर पाकिस्तानी सेना से सफलता पूर्वक लड़कर Digendra Kumar तोलोलिंग पहाड़ी के पॉइंट ४५९० पर भारत का झंडा फहराकर दिखाया, फिर वे बेहोश हो गए थे और उनकी आंख सेना के अस्पताल में खुली। १५ अगस्त १९९९ को भारत सरकार ने उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया। दिगेंद्र कुमार एकलौते सैनिक हैं, जिन्हें कारगिल युद्ध में महावीर चक्र मिला है।
जय हिन्द!
Featured Image Courtesy: Entertales (representational) and SSBCrack. The conversation above may or may not be original but it conveys more or less the same instance of the communication that took place between the two.
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Manoshi Sinha is a writer, history researcher, avid heritage traveler; Author of 8 books including 'The Eighth Avatar', 'Blue Vanquisher', 'Saffron Swords'.