इटली के मार्कोनी या भारत के जगदीश चंद्र बसु, Radio के असली आविष्कारक कौन?
कौन नहीं जानता मार्कोनी को! हम यही पढ़ते आये हैं कि इटली के गूल्येलमो मार्कोनी ने radio का अविष्कार किया। विश्व में रेडियो संचार के इतिहास में बिना तार के लम्बी दूरी तक रेडियो संकेत भेजने में वे कामयाब रहे। उन्होंने इसे ‘मार्कोनी नियम’ से नामकरण किया। इस खोज के लिए उन्हें १९०९ में फिज़िक्स का नोबेल पुरस्कार भी मिला।
लेकिन क्या आपको पता हैं की radio के असली अविष्कारक कौन हैं? इस आविष्कार का श्रेय भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु को जाता है। वे विश्व के पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने रेडियो और सूक्ष्म तरंगों की प्रकाशिकी पर कार्य किया। वे बिना तार के संकेत भेजने में कामयाब रहे और रेडियो संदेशों को पकड़ने के लिए अर्धचालकों का प्रयोग किया था। कोई अचरज नहीं की उन्हें रेडियो विज्ञान का पिता माना जाता है। फिर गूल्येलमो मार्कोनी को ही सारा श्रेय क्यों?
जगदीश चंद्र बसु ने अपने खोज को सार्वजनिक रूप से प्रकाशित कर दिया था। इसके पीछे एक वजह था। वे चाहते थे कि उनकी radio खोज के बारे में पढ़कर अन्य शोधकर्त्ता इस पर आगे काम कर सकें। उन्होंने इस विषय से व्यावसायिक लाभ उठाने की कोई चाह नहीं थी। उन्हें कॉमर्शियल टेलिग्राफी में रुचि नहीं थी।
जगदीश चंद्र बसु ने हर्ट्जियन तरंगों पर प्रयोग किया और ५ मिमी की सबसे कम रेडियो-तरंगों का निर्माण किया। नवंबर १८९४ में कोलकाता के टाउन हॉल में बसु ने एक सार्वजनिक प्रदर्शन के दौरान मिलिमीटर श्रेणी की तरंगदैर्ध्य माइक्रोवेव्स से बारूद को प्रज्वलित किया और दूरी पर एक घंटी बजाई। बसु radio संकेत भेजने में कामयाब रहे।
लेफ्टिनेंट गवर्नर सर विलियम मैकेन्ज़ी ने बसु के प्रदर्शन को देखा। बोस ने एक बंगाली निबंध अदृश्य आलोक में लिखा: “The invisible light can easily pass through brick walls, buildings etc. Therefore, messages can be transmitted by means of it without the mediation of wires.”
करीब एक महीने बाद दिसंबर १८९४ में मार्कोनी इटली में अपना पहला radio संकेत भेजने में कामयाब रहे। १८९९ में वे इंग्लिश चैनल के पार पहला वायरलेस सिग्नल सफलतापूर्वक भेजा।
सन १८९६-९७। जगदीश चंद्र बसु एक लेक्चर टूर पर लंदन गए थे। उन दिनों गूल्येलमो मार्कोनी ब्रिटिश पोस्ट ऑफिस के लिए वायरलेस बनाने के प्रयोग कर रहे थे। उनकी शिक्षा घर पर ही निजी तौर पर हुई थी। उनकी अधूरी पढ़ाई की मज़ाक उड़ाया गया था। लेकिन वे वैज्ञानिक थे और विद्युतचुम्बकीय तंरगो की मदद से दूर तक संदेश भेजने का प्रयास कर रहे थे। दोनों ही लंदन में मौजूद थे १८९७ में और दोनों एक दूसरे को जानते थे। दोनों का इंटरव्यू छपा मार्च १८९७ में मैक्लर नाम की मैगज़ीन में। जब लंदन में ब्रिटिश वैज्ञानिक मार्कोनी का मज़ाक उड़ा रहे थे बसु ने इस इंटरव्यू में उनकी काफी तारीफ की। इसी इंटरव्यू में बसु ने एलान किया कि वे कॉमर्शियल टेलिग्राफी में रूचि नहीं रखते।
USA न्यूयॉर्क में स्थित IEEE (Institute of Electrical and Electronics Engineers) ने जगदीश चंद्र बसु को ‘रेडियो विज्ञान के एक पिता’ का नाम दिया। लेकिन यह काफी नहीं है। हमे जो पुस्तकों में पढ़ाया जाता हैं, उसमे बसु को भी श्रेय दिया जाये, सिर्फ मार्कोनी को नहीं। IEEE का गठन १९६३ में दो संगठन की संयुक्त हुआ था – American Institute of Electrical Engineers और Institute of Radio Engineers।
वनस्पति विज्ञान में जगदीश चंद्र बसु ने कई महत्त्वपूर्ण खोजें की। वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने यह साबित किया कि पौधे में दर्द और स्नेह महसूस करने की क्षमता होती है। बोस पहले भारतीय वैज्ञानिक शोधकर्ता थे जिन्होने यह साबित कर के दिखाया। भौतिक विज्ञान, पुरातत्व और radio विज्ञान के क्षेत्रों में उन्होंने बड़े पैमाने पर योगदान दिया है।
Featured image courtesy: Wikipedia.
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Manoshi Sinha is a writer, history researcher, avid heritage traveler; Author of 8 books including 'The Eighth Avatar', 'Blue Vanquisher', 'Saffron Swords'.