शहीद Bhagat Singh आज ज़िंदा होते तो वामपंथ उन्हें राष्ट्रवादी/संघी कह के दुत्कारते: रोहित सरदाना
राजनीति में वामपंथी उस विचारधारा या पक्ष को कहते हैं जो समाज को बदलकर उसमें अधिक आर्थिक बराबारी लाना चाहते हैं। भारत में मार्क्सवादी वामपंथी का प्रतिनिधि है। केरल, बंगाल में वे ताक़तवर थे परन्तु अब कमज़ोर हो गए हैं। वर्त्तमान में वामपंथियों की सिर्फ त्रिपुरा में सरकार है।
वामपंथ कभी भारत के दृष्टिकोण से चला ही नही। सेक्युलरिज्म का मुखौटा पहन कर भारतीय समाज, संस्कृति और विश्वास को तोड़ने का प्रयास कर रहे है, जैसे जेएनयू का मुद्दा। मजदूरों के हित के लिए काम करने की प्रतिज्ञा करते है वामपंथी लेकिन वास्तविकता में वो मजदूरों के हित को कभी सोचा ही नही। वामपंथी अपने अपनी सिद्धि के लिये काम करते है।
वामपंथ देश हित में काम करने वालो या देश के लिए आवाज़ उठाने वालो को राष्ट्रवादी या संघी का नाम देते है। हाल ही में जी न्यूज के पत्रकार रोहित सरदाना ने ट्वीट कर कहा: “शहीद Bhagat Singh आज ज़िंदा होते तो वामपंथ/नास्तिकता के नाम पे दुकानें चलाने वाले ही उन्हें राष्ट्रवादी/संघी कह के दुत्कारते घूमते!”
जब Bhagat Singh की उम्र १२ वर्ष थी तब जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ था जहां ब्रिटिशों ने हजारों निहत्थे लोगों की हत्या कर दी थी। वह वहा खून में लिपटे हुए हज़ारो मृत शरीर के गवाह थे। यह दृश्य उन्हें बहोत परेशान किया था। तब से उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए काम करना शुरू कर दिया था। वह १५ वर्ष की आयु में युवा क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल हो गए। जब भगत सिंह २० वर्ष का था, उनके माता-पिता ने उनकी शादी तय की। वह शादी से बचने के लिए कानपुर भाग गए। एक पत्र छोड़ गए जिसपे लिखा था – “मेरी जिंदगी देश की स्वतंत्रता के लिए समर्पित है। इसलिए, कोई भी आराम या सांसारिक इच्छा मुझे आकर्षित नहीं कर सकती है”।
शहीद Bhagat Singh, सुखदेव और राजगुरु गांधीजी की अहिंसा नीति और असहयोग आंदोलन के खिलाफ थे। तीनो अनेक स्वतंत्रता सेनानियों के साथ, सक्रिय रूप से कई क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल थीं। २४ साल के उम्र में भगत सिंह को अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया था।
शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान से हम आज खुली हवा में सांस ले रहे है। जिस उम्र में हम अपने दोस्तों यारों में उलझे रहते है उस उम्र में इन शहीदों ने देश के लिए अपना प्राण बलिदान दे दिए।
क्या आपको पता है वामपंथियों ने अग्रेजो के साथ खड़े होकर ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन का विरोध किया था? इन्होंने इंदिरा गांधी सरकार के आपातकाल का समर्थन किया था? देश को पीछे धकेलने में ये अब भी लगे हुए है।