क्या श्रीमद्भगवद्गीता की प्रजनन क्षमता खो गई है??
बड़ा ही विचित्र सा शीर्षक है यह, क्या श्री भगवद्गीता की पुनरुत्पादन क्षमता पर कोई लेख भी लिखा जा सकता है? गीता (Bhagvad Gita and Krishna) क्या कोई बीज है? जिसे बोने से कुछ उत्पन्न हो सकेगा? गीता तो ज्ञान की पुस्तक है, उपदेश है एवं इसका पठन, पाठन एवं जीवन में इसके उपदेशों को उतारना ही गीता की क्षमता है एवं हमारे देश में हजारों वर्षों से साधू संत एवं विद्वान् इस विषय पर भांति भांति के लेखन कर चुके हैं एवं कई विद्वानों ने गीता रहस्य, प्रस्थान त्रयी पर भाष्य, श्री कृष्ण भावनामृत आदि आदि द्वारा गीता के रहस्यों को उद्घाटित किया है, फिर यह उलटबांसी किसी वामपंथी या अज्ञानी के ही दिमाग की उपज हो सकती है.
इस तर्क को इसी प्रकार स्वीकार करते हुए, अपनी बात रखता हूँ. सर्वप्रथम कुछ तथ्यों को ध्यान में लाते हैं. क्या महाभारत का युद्ध वास्तव में हुआ,एवं उसमें श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश (Lessons from Gita) दिया था? क्या हजारों वर्षों से संत समाज एवं विद्वान् गीता की निष्पक्ष व्याख्या कर रहे हैं है? यह स्वीकार करते हुए की महाभारत का युद्ध एक ऐतिहासिक सत्य है एवं गीता का उपदेश युद्ध के मैदान में अर्जुन को उसकी युद्ध के प्रति अनिच्छा के कारण युद्ध करने की प्रेरणा हेतु दिया गया था, कुछ प्रश्न और करते हैं. क्या गीता में युद्ध एवं जीत की प्रेरणा है एवं गीता के ज्ञान से अभिमंत्रित होकर अर्जुन ने युद्ध किया? यदि ऐसा हुआ तो गीता का वह ज्ञान कहाँ गया जो हमें शत्रु से लड़ने, उसका सर्वश्व नाश कर सम्पूर्ण एवं अंतिम जीत की शिक्षा देता है?
गीता का वह ज्ञान कहाँ गया जो कहता है की धर्म की स्थापना हेतु तुम्हारे सगे सम्बन्धी भी यदि बाधा बनते हैं तो उनका नाश कर धर्म की स्थापना करनी चाहिए? गीता का वह ज्ञान कहाँ गया जो हमें अहिंसा को परम धर्म बताते हुए धर्म स्थापना हेतु की गयी हिंसा को उससे भी उत्तम धर्म बताता है? गीता का वह ज्ञान कहाँ है जो जयद्रथ वध के लिए अर्जुन को पाशुपत अस्त्र पाने का मार्ग प्रशस्त करता है? गीता का वह ज्ञान कहाँ है जो भीम को महारानी द्रोपदी के अपमानों का बदला लेने एवं अपने वचन की रक्षा के लिए प्रेरित करता है? गीता का वह ज्ञान कहाँ है जिसने ग्यारह अक्षौहिणी सेना का विनाश आठ अक्षौहिणी सेना के हाथों करवा दिया? गीता का वह ज्ञान कहाँ है जिसने सत्य, न्याय एवं धर्म की स्थापना का मार्ग दोनों तरफ से करीब ४० करोड़ सेना के विनाश के मूल्य पर चुना?
कहते हैं गीता का ज्ञान गूढ़ है, इसे जानना साधारण मानव के लिए संभव नहीं, अर्जुन साधारण मानव नहीं थे इसलिए उन्हें असाधारण शब्दों के द्वारा यह सन्देश देना पड़ा, लेकिन साधारण मानव जिन शब्दों को समझ सकता है उन शब्दों में क्या गीता का सन्देश इस भारत भूमि पर उत्पन्न महान संतों एवं विचारकों द्वारा दिया जा रहा है? परम पूज्य आदि गुरु शंकराचार्य जी ने इस सन्देश को समझा एवं तत्कालीन समय में वैदिक मूल्यों एवं ज्ञान की हानि करने वाले दुश्मनों को पूर्ण परास्त कर उनका वैभव नष्ट कर वैदिक मत की स्थापना की, चूँकि शत्रु भी अपने ही थे एवं मार्ग से भटके हुए थे इसलिए पूज्य आदि गुरु ने गीता रुपी गेहूँ के छोटे से अंश से आटा बनाया एवं बताया की यह मात्र गेहूँ नहीं है इससे आटा बनाकर मानव मात्र की ज्ञान की भूख भी शांत की जा सकती है. आदि शंकराचार्य ने जैन, बोद्ध मतों के तिलस्म को तोडा एवं सत्य को स्थापित किया, अकर्मण्य राज समाज को वापस मुख्यधारा एवं राष्ट्रीय विचारों से जोड़कर सत्य एवं न्याय की स्थापना हेतु प्रेरित किया, आज जो आदि गुरु के मठों एवं मठाधीशों की स्थिति है उसकी तो उन्होंने शायद स्वपन में भी कल्पना नहीं की होगी. ज्ञान के केंद्र जहाँ से निकला विद्यार्थी, जीवन का जो भी क्षेत्र चुनेगा, विश्वविजयी ही होगा यह मूल था आदि गुरु का शंकर पीठ स्थापना के पीछे, कहाँ छोड़ आये हम उस पवित्र उद्देश्य को?
बाद वालों ने केवल उस आटे को ही मूल समझ लिया एवं भांति भांति के पकवान बनाकर समाज के सामने रखते गए, उस गेहूं रूप मूल को भूल गए जो अपने जैसे असंख्य गेहूं उत्पन्न कर सकता था जो असंख्य युद्धों में जीत की सृष्टी कर सकने में समर्थ था. वास्तव में गेहूँ के आटे से आप भांति भांति के पकवान तो बना सकते है लेकिन मूल के पुनरुत्पादन के स्वभाव को नष्ट करके, यदि गीता के मूल को हमने जान लिया होता तो हमें गुलामी नहीं सहनी पड़ती, कोई हमें वैचारिक रूप से एवं सामाजिक रूप से बाँट नहीं पाता, किसी म्लेच्छ की गुलामी या किसी म्लेच्छ के लिए हमारे इतिहास एवं इतिहास पुरुषों का अपमान हमें नहीं सहना पड़ता.
कहते है हर व्यक्ति को उसकी मानसिक योग्यता के हिसाब से समझाना ही हितकर होता है, अर्जुन तो ज्ञानी थे एवं युद्ध न करने के उनके तर्क भी वैसे ही थे इसलिए गीता जैसे गूढ़ ज्ञान से उन्हें युद्ध करने के लिए प्रेरित करना पड़ा किन्तु सामान्य जन को कौन गीता का ज्ञान सरल भाषा में समझाएगा, कौन १०० करोड़ अर्जुन तैयार करेगा? कौन उन्हें अंतिम युद्ध के लिए प्रेरित करेगा? कौन इस पवित्र एवं उर्जावान संस्कृति को बर्बर, धूर्त, कुटिल एवं आत्मघाती घरवालों एवं बाहरवालों से मुक्त करेगा? कौन दुशासन की भुजा उखाड़ेगा, कौन दुर्योधन की जंघा तोड़ेगा? कौन अर्जुन के कांपते हाथों में वापस गांडीव देगा? कौन कहेगा की भारत उठ!! जागृत हो!!
गीता का कर्म योग एवं सांख्य योग आखिर है क्या, संख्याओं का योग, force multiplication, जैसा दो भाइयों ने बिना अपने राज्य एवं ससुराल की सहायता से केवल अपने बूते विभिन्न संस्कृतियों के नायकों को एक साथ जोड़कर रावण के साम्राज्य को नष्ट किया, कर्म योग जिसे कारागृह में पैदा होकर अपने समाज को कर्म के लिए प्रेरित कर बुआ एवं बहन के हक की लड़ाई में धर्म स्थापना द्वारा सिद्ध किया, स्वयं के लिए कुछ न रखकर समस्त मानवता को सबकुछ दे दिया, इसके अलावा कोन सा योग हम खोज रहें है? हमने इतिहास को हमारी सुविधा अनुसार तोड़ मरोड़ कर रख दिया है, हमारे इतिहास नायकों का अपमान हमें उद्द्वेलित ही नहीं करता, उलटे वे प्रसाद की रिश्वत खाकर हमारी स्वार्थ पूर्ती के साधन बन जाते है, हम उन्हें पत्थरों में जकड देते हैं, पूजाओं में उलझा देते हैं, बस केवल नहीं चाहिए तो उनके चरित्र से प्रेरणा, क्योंकि यदि हमने प्रेरणा ली तो वह प्रेरणा हमें विवश कर देगी राष्ट्र एवं संस्कृति पर चिंतन करने को एवं इनकी रक्षा करने को, जो हम करना ही नहीं चाहते.
भगवान् ने कहा यदा-यदा ही, अभ्युथानम अधर्मस्य, आज गीता की करोड़ों प्रतियाँ उपलब्ध है, सारा ज्ञान खुला है फिर भी हमारा समाज यह आशा करता है की कृष्ण आयेंगे एवं एक एक के कानों में गीता फिर से कहेंगे तब हम कुछ करेंगे, कृष्ण क्यों आयेंगे, क्या हम युद्ध के लिए प्रस्तुत है? यदि सर्वस्व अर्पण एवं मातृभूमि एवं मातृ संस्कृति की रक्षा हेतु हम प्रस्तुत हैं एवं फिर कोई संसय हमें है तो कृष्ण आयेंगे, जरूर आयेंगे, तुम्हारे सारे संशय दूर कर देंगे पर युद्ध के लिए प्रस्तुत तो हो. अर्जुन ने भी शायद कीर्तन कर कर के कृष्ण से ज्ञान प्राप्त कर लिया होगा, शायद भीम का आत्मबल छप्पन भोग से ही आया होगा? धर्म के साक्षात् स्वरुप युधिष्ठिर तो मंदिर में ही बैठे रहते होंगे? क्या हो गया है हमें?
कुछ भाड़े के भांडों ने श्रीराम पर प्रश्न चिन्ह लगाया, कुछ ने कृष्ण को रसिया, चोर और भी न जाने क्या क्या कहा, किसी ने आर्यों को बाहर से आया हुआ घोषित कर हमारे मूल पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया, हमारे इतिहास को मिटाने में मुस्लिम लुटेरों ने कोई कसर नहीं छोड़ी, हमारे सांस्कृतिक चिन्हों एवं विरासत को नष्ट करने का षड़यंत्र अनवरत चालू है, ग्रन्थों में मिथ्या मिलावट, गलत सलत परिभाषाएं, ऊपर से हमारे अपने समाज के ढोंगी एवं पाखंडी, सत्ता के भूखे राजनीतिबाज, सब कुछ सह कर भी यदि हमारा पौरुष जागृत नहीं हुआ तो कब होगा? हमने वीर महाराणा प्रताप का अपमान सहा, अकबर महान हो गया, हमने शिवाजी महाराज का अपमान सहा, औरंगजेब को महिमा मंडित करते रहे, पेशवा बाजी राव, महारानी पद्मिनी, बोस, आज़ाद, भगत सिंह, महारानी लक्ष्मी बाई जी किस-किस का अपमान हमने नहीं झेला, केवल कुछ सत्ता के भूखे, लम्पट एवं चरित्रहीन राजनीतिबाजों की शह पर. उनके सत्य को जानने वाले एवं संघर्ष करने वाले परम्परा रक्षक एवं कुलगौरव के वाहक क्या सभी का वीर्य निष्प्राण हो चूका है या फिर हमने अपने अपने झोपड़े बना लिए है, भारत रुपी विशाल किले की दीवारों के पत्थरों से एवं उम्मीद कर रहें हैं की हमारा झोपड़ा तो बच जायेगा.
एक समाज के रूप में हमारी उर्वरा शक्ति इतनी क्षीण हो चुकी है की गीता रूपी बीज भी शायद ही फलीभूत हो पाए एवं विशेष रूप से वह बीज जिसे इतने मुलम्मों से ढक दिया गया है की मूल का उन मुल्लमों को भेद पाना ही संदिग्ध हो चला है. आज गीता को जानने की नहीं जीने की आवश्यकता है, कोई हमें जगाने नहीं आएगा, स्वयं ही जागना है, जिस गीता के ज्ञान ने अट्ठारह अक्षौहिणी सेना एवं महाबली शासकों के विनाश का मार्ग प्रशस्त कर दिया वह गीता आज पुकार रही है, “उठो पार्थ गांडीव धारण करो एवं शत्रुओं के सम्पूर्ण विनाश का मार्ग प्रशस्त करो”, अब यदि अर्जुन की चेतना का वीर्य सुख चुका है, यदि पांडव वीर्यहीन नपुंसक बन गए हैं, यदि भारत का रक्त पानी हो चुका है, यदि भारत बलहीन हो चुका है, यदि भारत का शौर्य चुक गया है तो एक क्या करोड़ों कृष्ण भी इस धरती पर जीत का शंख नहीं फूंक सकते.
गीता बार-बार दोहराई नहीं जाएगी, लेकिन महाभारत बार-बार लड़ने होंगे अपनों से भी, और परायों से भी, प्रतिक्षण तैयारी एवं जीत के लिए कृतसंकल्प, कृष्ण तो साथ देंगे ही, किन्तु हथियार हमें स्वयं ही उठाने हैं, शत्रु को पहचान कर शरसंधान हमें ही करना है, कृष्ण तो मात्र हमारी दृष्टि को और स्पष्ट करेंगे.
Featured image courtesy: The Hindu FAQs.
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