साक्षी से कृष्णसाक्षी तक- एक अनोखी कहानी

कृष्णसाक्षी

शादी, शायद जीवन का सबसे सुन्दर रिश्ता है| एक ऐसा रिश्ता जिसमें दो अलग अलग परिवारों के, अलग अलग सोच रखने वाले दो लोग, हर परिस्थिति, हर समस्या का साथ में सामना करते हुए एक परिपूर्ण जीवन का निर्वाह करते हैं| पर इसी शादी के रिश्ते में जब अहंकारों की टक्कर होती है, तो ये ही रिश्ता एक अभिशाप भी बन जाता है| ऐसे बहुत से शादीशुदा जोड़े हैं, जो सिर्फ और सिर्फ मजबूरी में एक दुसरे का साथ निभाते रहते हैं| बहुत सी औरतें हैं, जो घरेलू हिंसा तक झेलते हुए उसी पति का साथ निभाने में लगी रहती हैं| पर ये एक बहुत बड़ा सवाल है कि क्यों? क्यों जब ऐसे क़ानून हैं जो एक औरत को इस तरह के रिश्ते से मुक्ति दिला सकते हैं, तो भी वो उस रिश्ते से निकलने की कोशिश ही नहीं करती? क्या ये किसी डर के कारण है या फिर औरत की अपनी ही कोई ऐसी मानसिकता है, जिसके चलते उसे लगता है कि ये रिश्ता निभाना ही सही कदम है? 

 

कृष्णसाक्षी कहानी ऐसे ही कुछ सवालों का जवाब ढूँढने की कोशिश है| क्या चलता है एक घरेलू हिंसा से पीड़ित औरत के मन में? क्या ऐसे रिश्ते में प्यार की कोई जगह है? क्या एक इंसान एक ऐसे इंसान से प्यार कर सकता है जो उसे शारीरिक और मानसिक पीड़ा पहुँचाता हो? और किसी को ऐसी पीड़ा पहुँचाने वाला इंसान क्या पूर्ण रूप से एक खलनायक होता है, या उसके पास भी अपने कोई कारण होते हैं? पर क्या कोई भी कारण घरेलू हिंसा को सही सिद्ध कर सकता है? और साथ ही जिस पति-पत्नी के रिश्ते में इस तरह की कडुवाहट हो, उनके बीच शारीरिक सम्बन्ध कैसे बन सकते हैं? क्या ये अजीब नहीं है? सवाल बहुत हैं और मेरी कहानी की मुख्य किरदार साक्षी ऐसे ही सवालों में उलझी पड़ी है| और उसकी इस उलझन से उसे एक बड़ा ही अनूठा तरीका निकालता है, और वो है- भक्ति|

 

भक्ति का इस कहानी में एक बहुत बड़ा स्थान है| कहने को भक्ति एक छोटा सा शब्द है, पर शायद इससे प्रबल शब्द दुनिया में दूसरा नहीं है| भक्ति में जीवन को पूरी तरह से बदल देने की क्षमता है| भक्ति एक ऐसा भाव है जो इंसान को विश्वास दिलाता है कि वो अकेले नहीं है; एक शक्ति है जिसकी नजर हर समय उस पर है| और इस शक्ति के बहुत से नाम हैं| एक कहावत है कि जैसे भक्त, वैसे भगवान्| एक भक्त जिस प्रकार के सम्बन्ध की भगवान् से अपेक्षा रखता है, उस तरह के स्वरूप से ही उसका सामना होता है|

कृष्णसाक्षी

Click here to buy कृष्णसाक्षी by Pratyasha Nithin.

 

साक्षी का भी सामना हुआ, गिरिधर से| जहाँ साक्षी एक ऐसी लड़की है, जिसकी समस्याएँ उसके लिए एक पहाड़ जितनी बड़ी हैं; वहीँ गिरिधर भगवान् का वो रूप हैं, जिन्होंने बड़े आराम से गोवर्धन अपने बाएँ हाथ की सबसे छोटी ऊँगली में उठा लिया था| ये कहानी साक्षी और गिरिधर के उस सम्बन्ध की है जो उसे साक्षी से कृष्णसाक्षी बनने की दिशा में ले जाती है| 

 

इस कहानी को लिख पाने में मेरे पति नितिन श्रीधर का बहुत बड़ा योगदान है| क्योंकि उनसे ही मैंने एक पति पत्नी के रिश्ते का अर्थ समझा है; प्यार को समझा है| वो मेरी कहानियों के पीछे की प्रेरणा भी हैं और उन कहानियों के सबसे पहले श्रोता भी| 

 

इस उपन्यास के हर एक पात्र के गुण-अवगुण कहीं ना कहीं हम सभी में हैं| हम सभी किसी भी परिस्थिति को अपने नजरिये से देखते हैं और अपनी समझ के हिसाब से निर्णय लेते हैं| कभी कभी हमारे यहीं निर्णय किसी दूसरे के जीवन को किस तरह प्रभावित कर देते हैं, इस बात पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता| मुझे विश्वास हैं कि इस कहानी के सभी पात्रों से पाठक एक जुड़ाव महसूस करेंगे| 

 

-प्रत्याशा नितिन  

 

(प्रत्याशा नितिन कर्नाटक प्रांत के मैसूर नगर की निवासी हैं | वह एक लेखिका एवं चित्रकार हैं | वो धर्म सम्बन्धी कहानियां लिखना पसंद करती हैं | उनका उद्देश्य ऐसी कहानियां लिखने का है जो लोगों को अपनी जड़ों से वापस जोड़ सकें एवं उनके मन में भक्ति भाव जागृत कर सकें | उनकी हिंदी एवं अंग्रेजी में लिखी कहानियां प्रज्ञाता नामक ऑनलाइन पत्रिका में प्रकाशित हुई हैं | साथ ही उन्होंने दो लघुकथाएँ “मायापाश” और “झूठ की परत” भी लिखी हैं|)

Facebook Comments Box
The following two tabs change content below.
error: Content is protected !!
Loading...

Contact Us