योगेंद्र सिंह यादव: टाइगर हिल के युद्ध के प्रत्येक पल का वर्णन
“जब सिर पर बांध लिया हो कफन,
तो मौत हमें क्या डराएगी?
जब कर लिया हो दृढ़ निश्चय जीत का,
तो है कोई ताकत जो हमें हराएगी ।
संकल्पों एकता और विश्वास की
दृढ़ता है हमारे पास ,
जो दुश्मनों को चीर कर टाइगर हिल पर
विजय पताका फहरायगी ।”
यही सोच और भावना थी तत्कालीन ब्रिगेडियर ब्रिगेड कमांडर मोहिंदर प्रताप सिंह बाजवा की (तत्कालीन ब्रिगेड कमांडर 192 माउंटेन ब्रिगेड कारगिल युद्ध ऑपरेशन “विजय”) । जब बाजवा जी को टाइगर हिल का टास्क मिला, तब उन्होंने पहली बार टाइगर हिल की तरफ देखा, और उनके मुंह से और दिल से यह शब्द निकले ……
“देह शिवा वर मोहे ईहे
शुभ कर्मन ते कभु न टरू :
ना डरौं अरि सो जब जाए लड़ौं
निश्चय कर अपनी जीत करौं”
जब किसी काम के लिए दृढ़ निश्चय हो तो जीत अवश्य ही होती है ।
ऐसे ही एक दृढ़ निश्चयी बालक ने 10 मई 1980 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में, औरंगाबाद अहीर गांव के एक किसान और फौजी परिवार में जन्म लिया । नाम रखा गया योगेंद्र सिंह यादव । वह करण सिंह यादव और संतरा देवी की दूसरे नंबर की संतान थे । जहां उन्हें देश भक्ति, देश प्रेम और राष्ट्र पर सर्वस्व न्योछावर करने की प्रेरणा पिता से मिली, वही मां संतरा देवी से धार्मिकता और सात्विकता को अपनाया। उनके पिता करण सिंह यादव जी ने 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भाग लेते हुए कुमाऊं रेजिमेंट की सेवा की थी ।दादा दादी और माता-पिता से युद्ध के किस्से सुनते हुए उनके अंदर सेना में जाने का बीज रोपित हो गया ।
गांव के सरकारी स्कूल से पांचवी कक्षा और फिर कृष्णा इंटर कॉलेज से दसवीं तक की पढ़ाई की। जब वह 11 वीं कक्षा में पढ़ रहे थे तभी पिता बीमार हो गए। बड़े भाई फौज में जा चुके थे । छोटी उम्र में कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ पड़ा, तभी से शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत होते गए । खेती के काम में मां को सहयोग देने लगे और इस सपने के साथ ही बड़े हुए कि मुझे भारत मां की सेवा करनी है। पिताजी अपने युद्ध के अनुभव अपने साथियों को सुनाते, तो वह बहुत ध्यान से सुनते और तभी से फौज में जाने की प्रतिज्ञा कर ली। सपने में भी उन्हें लड़ाइयाँ ही दिखाई देती।
बड़ा भाई जब छुट्टी पर घर आया तब उनसे बोला – तुम अभी फौज में ट्राई कर लो तब उन्होंने कहा, मैं अपनी इंटर की पढ़ाई खत्म कर लूं तब ट्राई करूंगा । पर वह बोले पढ़ाई तो चल ही रही है ट्राई करके देख लो ।तब उनकी उम्र 16 वर्ष 5 महीने थी अक्टूबर में फौज में भर्ती निकली और उसमें ट्राई करने चले गए। इंसान का अपने ऊपर विश्वास ही सफलता की कुंजी होती है ।उन्हें भी अपने ऊपर इतना अधिक विश्वास था कि एक बार ट्राई करूंगा तो सेलेक्ट हो ही जाऊंगा। पहली बार में ही सिलेक्ट हो गए और इतनी कम उम्र में उनका सेना मे जाने का सपना पूरा हो गया ।
उनकी भर्ती ग्रेनेडियर रेजीमेंट में हुई जब वह दसवीं कक्षा में थे तब उन्होंने परम वीर चक्र अब्दुल हमीद और मेजर होशियार सिंह जी की कहानियां पढ़ी थी , जोकि ग्रेनेडियर रेजीमेंट में थे जब उन्हें भी इस रेजीमेंट में भेजा गया तो उन्हें लगा ईश्वर उनके ऊपर बहुत मेहरबान है ।और उनके सारे सपने पूरे करता जा रहा है। 1 साल की ट्रेनिंग के बाद उन्हें 18 ग्रेनेडियर की पोस्ट मिली । वह 18 ग्रेनेडियर्स के साथ कार्यरत कमांडो प्लाटून घातक का हिस्सा थे ।इस ग्रेनेडियर की नैतिकता और सामाजिक मूल्यों ने उन्हें काफी स्ट्रांग कर दिया था। यह यूनिट कश्मीर वैली के अंदर ही थी। वहां पहुंचकर आतंकवाद के खिलाफ ऑपरेशन करना, उनको घेरना और भी बहुत कुछ सीखा ।
वह 1999 में जनवरी-फरवरी 2 महीने की छुट्टी पर घर आए तभी उनकी शादी तय हो गई और मई में मात्र 20 दिन की छुट्टी पर घर आए 5 मई को उनका विवाह हुआ और 20 मई को वापस अपनी ड्यूटी जॉइन कर ली । विवाह के बाद उन्होंने अपनी पत्नी रीना से कहा , विवाह मेरे लिए परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाने का माध्यम मात्र है। मेरा पहला प्यार मेरा देश है। उसी के सपनों के साथ मैं बड़ा हुआ हूं । विवाह का बंधन हम फौजियों को बांध नहीं पाता। तुम मेरी ताकत बनकर सदा मेरे साथ रहो, ताकि मैं मातृभूमि के प्रति अपनी ड्यूटी को पूरी निष्ठा के साथ निभा सकूं। जब वह 20 मई को अपनी ड्यूटी पर पहुंचे तब कारगिल युद्ध की शुरुआत हो चुकी थी। कारगिल युद्ध 3 मई 1999 को शुरू हुआ और 26 जुलाई 1999 तक चला ।
फरवरी 1999 में हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई जी ने “लाहौर बस यात्रा “शुरू की ताकि पाकिस्तान के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बने । सभी को लग रहा था कि पाकिस्तान के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बन रहे हैं, तो देश को युद्ध की विभीषिका नहीं झेलनी पड़ेगी हमारी सोच जब इंसानियत के साथ जुड़ेगी तो ताकत बढ़ेगी ।पाकिस्तान के फौजी हुक्मरान नहीं चाहते थे कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच में इंसानियत जिंदा रहे वह इंसानियत को दफन करना चाहते थे । उसी मैत्रीपूर्ण वातावरण में उन्होंने षड्यंत्र रच दिया । कारगिल की तमाम हिंदुस्तानी चौकियों पर उन्होंने कब्जा कर लिया।
क्योंकि 1971 में जो शिमला समझौता हुआ था उसके कुछ नियम बनाए गए थे। इतनी ऊंची जो दुर्गम पहाड़ियां है जहां जीवनयापन बहुत मुश्किल होता है उसके हिसाब से हमारी फौजी नीचे थी ।और पाकिस्तान ने हमारी सारी पोस्ट पर कब्जा कर लिया। एक दिन योगेंद्र जी को स्वप्न दिखाई दिया कि हमारे राष्ट्रीय झंडे को लेकर कोई भाग रहा है और दोनों तरफ से गोलियां चल रही हैं। जब उन्होंने सपने की बात घर वालों को बताई, तो सबने कहा तू कश्मीर में रहता है, गोलियां चलाता रहता है तो दिमाग में वही बात रहती है। लेकिन जम्मू पहुंचते ही उनका सपना सच हो गया उनकी बटालियन जो कश्मीर वैली में थी उनको द्रास सेक्टर में भेज दिया। और आदेश हुआ जो 18 ग्रेनेडियर्स के बंदे हैं जल्दी से जल्दी अपने डॉक्यूमेंट जमा करें उन्हें द्रास सेक्टर की तोलोलिंग पहाड़ी पर चल रही लड़ाई में शामिल होने के लिए भेजा जा रहा था । उनके लिए यह बहुत ही खुशी और गर्व के पल थे उनका सपना आज पूरा होने जा रहा था।
योगेंद्र जी के साथ 15 जवान और थे जिन्हें अम्यूनिशन और राशन पानी पहुंचाने का काम मिला। वह लोग सुबह 5:30 बजे चलकर रात को 2:30 बजे पहुंचते थे। और फिर 2 घंटे में नीचे वापस आते थे। चारों तरफ से दुश्मनों के आर्टलरी फायर, मोटर फायर और गोलियों के फायर से बचते बचाते आगे बढ़ते जा रहे थे बस उन्हें एक ही लगन रहती ऊपर जो साथी बैठे हैं ,वह इसलिए फायर कर रहे हैं कि हम उनको एम्युनिशन दे रहे हैं। और वह हमारे सीने को सुरक्षित रख रहे हैं ,तो हमारा भी फर्ज बनता है कि हम उनकी पीठ को सुरक्षित रखें ।इसी उद्देश्य से 22 दिन लगातार चलने की ताकत मिली। 22 दिन चलने वाले इन 3 जवानों की यह पहचान बन गई कि तीनों फिजिकली और मेंटली बहुत स्ट्रॉन्ग है इसलिए इनको अलग विशेष टुकड़ी में शामिल किया जाए ।
इंसान यदि किसी काम में अपनी पूरी आंतरिक शक्ति लगा देता है, तो वह काम अव्वल दर्जे का हो जाता है,और वह उस इंसान की पहचान बन जाता है। इनकी बटालियन ने 22 दिन के कड़े संघर्ष के बाद, दो ऑफिसर, दो जूनियर कमीशंड ऑफिसर और 21 जवानों को खोकर 22 जून 1999 को पहली सफलता के रूप में तोलोलिंग पहाड़ी को प्राप्त किया।
अब इनके सामने चुनौती थी द्रास सेक्टर की सबसे ऊंची चोटी टाइगर हिल को जीतने की ।जिसकी ऊंचाई 16,500 फुट थी। कमांडिंग ऑफिसर कर्नल कुशालचंद ठाकुर ने टाइगर हिल पर कब्जा करने की योजना तैयार की थी। लेफ्टिनेंट बलवान सिंह के नेतृत्व में 18 ग्रेनेडियर्स के घातक प्लेटून को यह टास्क दिया गया।
तब उनके बटालियन कमांडर कर्नल खुशाल ठाकुर ने कहा हमें एक और टास्क हिंदुस्तान की फौज ने दिया है ,ताकि हमारे जो जवान शहीद हुए हैं हम उनका बदला ले सके ।
योगेंद्र जी की ढाई साल की सर्विस थी ,और मात्र 19 साल की उम्र ।कोई अधिक तजुर्बा नहीं था। सिर्फ था तो साहस, जोश, जुनून और बदले की भावना ।जिसने उनके अंदर एक ऐसी शक्ति का संचार कर दिया था। कि 17 गोलियां लगने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और लड़ते रहे।
2 जुलाई को उनकी टीम “घातक प्लाटून” ने टाइगर हिल की पहाड़ी पर चढ़ना शुरू किया। दो रात और 1 दिन लगातार पहाड़ी पर चढ़ने के बाद, तीसरी रात का वह मंजर बहुत ही भयानक था ।90 डिग्री की सीधी चट्टान थी, सब एक दूसरे का हाथ पकड़ रस्सियों के सहारे बहुत ही कठिन चढ़ाई चढ़ रहे थे। तभी दुश्मन ने दोनों तरफ से फायरिंग खोल दिया, और रास्ता कट ऑफ हो गया । 7 जवान ही ऊपर पहुंच पाए ।सामने 7-8 मीटर का खाली मैदान था ,और दुश्मन के बंकर । हमारे सैनिकों ने जबरदस्त फायरिंग किया , और पाकिस्तान के तमाम सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। टॉप पर पाकिस्तान की सेना का कब्ज़ा था ।उन्होंने देखा हिंदुस्तान की फौज बहुत नजदीक आ गई है ।हमारी फौज पर जबरदस्त फायरिंग हुआ ,और वह ऐसी स्थिति में आ गए कि एक कदम आगे बढ़ें तब भी मौत और एक कदम पीछे रखें तब भी मौत थी ।
मगर हिंदुस्तान के सैनिकों को मौत से डर कहां लगता है। सोचा, मरना ही तो है…. जितने ज्यादा से ज्यादा मार सके, हम मारेंगे । हिंदुस्तान के सैनिकों का शरीर चाहे गोलियों से छलनी ही क्यों ना हो जाए, रक्त की आखिरी बूंद तक उसके कदम दुश्मन की तरह बढ़ते हैं, पीछे नहीं हटते ।हमारे सैनिकों ने उन्हीं के मोर्चो से डेड बॉडीज निकाल कर वहां से फायर किया। 5 घंटे तक लगातार फायरिंग करते रहे ।पीछे से कोई सपोर्ट नहीं था। तब एक रणनीति बनाई, एम्युनिशन (गोलियां) का इस्तेमाल तभी करेंगे ,जब दुश्मन पत्थर से बाहर निकल कर आएगा । जब हमारे सैनिकों ने उनके फायर का कोई जवाब नहीं दिया, तो उन्हें लगा कि सब मारे जा चुके हैं। 20 मिनट लगातार फायरिंग करने के बाद पाकिस्तानी यह देखने के लिए आए ,कि हम में से कोई जिंदा बचा है या नहीं। तभी हमारे सैनिकों ने उनके ऊपर फायर खोला, वह आठ 10 लोग थे, उनमें से शायद एक या दो लोग जिंदा बचे थे, उन्होंने ऊपर जाकर अपने कमांडरों को बताया कि वहां पर हिंदुस्तान के 8-10 जवान है, 30 मिनट के अंदर ही पाकिस्तान के 35-40 जवानों ने हमारे सैनिकों पर इतना जबरदस्त हमला किया, कि हमारे सैनिक सर भी नहीं उठा पाए ।
और फिर ऊपर से पत्थर और ग्रेनेड फेंकने शुरू कर दिए। हमारे सैनिकों ने फायर नहीं खोला उन्हें डर था कि फायर खोलते ही हमारी लोकेशन जाहिर हो जाएगी। और तब वह आसानी से हमें बर्बाद कर देंगे। जब पाकिस्तानी नजदीक आए तो उन्हें हमारी LMG (लाइट मशीन गन)) की लाइट नजर आई। उसी के ऊपर उन्होंने RPG का राउंड दागा। उससे हमारा हथियार डैमेज हो गया। फिर उन्होंने हमारे प्लाटून हवलदार को पत्थर से घायल कर दिया । LMG के ठीक बाॅयी तरफ योगेंद्र जी थे । प्लाटून हवलदार ने कहा,” योगेंद्र LMG जी को उठाकर फेंक, दुनिया में इस हथियार के सिवाय कोई बचाने वाला नहीं है” बस यह उनके आखिरी शब्द थे । LMG को फेंकने के बाद जैसे ही उन्होंने ऊपर की ओर देखा तो पांच पाकिस्तानी जवान खड़े थे। उन्होंने कहा.. सर, यह तो बहुत नजदीक आ गए हैं, यहां तक कि उनकी आवाज भी दुश्मनों तक पहुंच गईl उन्होंने ऊपर से एक ग्रेनेड फेंका ,ग्रेडेड का स्प्लिंटर उनके साथ बैठे जवान को लगाl उसकी उंगली कट कर दूर जा गिरीl वह बोला, योगेंद्र . .मेरा तो हाथ कट गया, योगेंद्र जी बोले ,सर… हाथ नहीं कटा सिर्फ उंगली कटी हैl तभी एक और जवान घायल हो गयाl सभी ने बोला, आप लोग नीचे चले जाओ कम से कम अपने साथियों को जो चढ़ सकते हैं चढ़ाने की कोशिश करोl
योगेंद्र जी को महसूस हुआ, जो अब तक किताबों में पढ़ते थे, आज हकीकत में वही सब प्रत्यक्ष देख रहा हूं, कि किस तरह एक सैनिक न जाति देखता है ना धर्म देखता है सिर्फ वर्दी देखकर अपने आपको अपने साथी के लिए कुर्बान कर देता है। तभी एक साथी और घायल हो गया। वह उसकी मदद करने पहुंचे ।जैसे ही दुश्मनों की निगाह उन पर पड़ी, उन्होंने ग्रेनेड फेंका स्पलिन्टर का टुकड़ा उनके पैर पर लगा । पैर में गहरा जख्म हो गया जैसे ही वह फर्स्टऐड करने लगे एक और स्प्लिंटर का टुकड़ा उनकी नाक पर लगा। नाक से खून की धारा बहने लगी चेहरा सुन्न हो गया । वह अपने साथी के पास गए सर फर्स्टऐड कर दीजिए। उन्होंने फर्स्ट एड करने के लिए पट्टी निकाली ही थी कि एक गोली आकर उनके सिर में लगी। उन्होंने अपने साथी अनंतराम से कहा, सर को तो गोली लगी है तभी एक गोली अनंतराम के गाल को चीरती हुई निकल गई। योगेंद्र जी ने अपने साथियों से कहा दोनों बंदे शहीद हो गए हैं ।बस इतना ही बोल पाए थे कि दुश्मनों ने उन सब को चारों ओर से घेर लिया। जबरदस्त बमबारी की ।तमाम साथी शहीद हो चुके थे ।उन्हें लगा बस, अब सब कुछ खत्म हो गया ! पाकिस्तान के कमांडर ने आकर सब को चेक किया कि कोई जिंदा तो नहीं है।
योगेंद्र जी बेहोशी की हालत में थे, लेकिन उनको सुन पा रहे थे ।वह अगल-बगल के सभी साथियों को गोलियां मारते जा रहे थे। उनके भी टांगों और हाथों में गोली लगी थी। धुआं निकल रहा था, लेकिन चुपचाप पड़े पीड़ा को सहते रहे ।सांस रोककर पड़े रहे जैसे मर चुके हो। जब उन्हें यकीन हो गया कि कोई जिंदा नहीं है, फिर भी उन्हें ठोकरे मारते हुए गालियां देते रहे। तभी पाकिस्तान के कमांडर के शब्द उनके कान में पड़े। नीचे हिंदुस्तानियों की एमएमजी की जो पोस्ट है उसे बर्बाद कर दो। उन्हें लगा अब उनके सभी साथी शहीद हो जाएंगे। उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की, कि मुझे इतनी देर जिंदा रखो, कि मैं अपने साथियों को खबर कर सकूं। उन्होंने फिर से सब को चेक करना शुरू किया योगेंद्र जी ने सोचा, चाहे मेरे हाथ पैर कट जाए उफ नहीं करूंगा ।लेकिन सिर और सीने में गोली ना लगे।
दुश्मनों ने फिर से उनके हाथ और पैरों में गोलियां मारी। जैसे ही उनके सीने की तरफ बंदूक तानी, एक पल के लिए लगा अब नहीं बच पाऊंगा । मगर गोली उनकी वर्दी की पॉकेट में रखें पर्स के 5-5 के सिक्कों से टकराकर रिवर्स हो गई। शायद यह उनका ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास धार्मिकता ,सात्विकता और आध्यात्म की ताकत थी, 17 गोलियां लगने के बाद भी वह जिंदा थे। तब उन्हें विश्वास हो गया अभी तक नहीं मरा, तो मरूंगा भी नहीं । उन्होंने अपना आखिरी हथगोला दुश्मन पर फेंका जो उसकी कोट की हूड़ में फस गया जब तक वह कुछ समझ पाता, हथगोला फटा और उसका सिर कट गया। अब योगेंद्र जी ने उसकी राइफल को उठाकर अलग-अलग जगहों से जाकर फायरिंग किया । दुश्मनों को लगा कोई अतिरिक्त टुकड़ी उनकी सहायता के लिए आ गई है। और सब लोग भाग खड़े हुए। तीन चार फीट की दूरी पर दुश्मनों का लंगर चल रहा था। उनके टेंट लगे हुए थे, हेवी वेपन का डेप्लॉयमेंट था। उन्होंने पूरी इंफॉर्मेशन इकट्ठी की। बस एक ही जुनून था कि अपने साथियों को बचाना है ।धीरे-धीरे अपने साथियों तक पहुंचे ,लेकिन कोई भी जीवित नहीं था। वहां बैठकर बहुत देर तक रोते रहे। टूटे हाथ को बांधने की कोशिश की। जब नहीं बंधा तो लगा कि तोड़ कर फेंक दूं। हाथ को तोड़ने की कोशिश भी की नहीं टूटा ,तो कमर में बेल्ट में फंसा लिया ।
उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं ।तभी एक आवाज सुनाई दी बेटा इस नाले से नीचे उतर जा ।लुढ़कते लुढ़कते नीचे पहुंचे जब अपने साथी दिखाई दिए उन्हें पूरी सूचना दी पोस्ट को बचा लो। दोपहर 2:00 बजे उन्हें सीईओ कमांडिंग ऑफिसर कुशाल चंद ठाकुर के पास पहुंचाया गया ।उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था ।72 घंटों से उन्होंने कुछ खाया भी नहीं था। डॉक्टर ने उन्हें एक पूरी ग्लूकोस की बोतल पिलाई तब उनमें एनर्जी आई और उन्होंने पूरा घटनाक्रम अपने सीओ(कमांडिंग ऑफिसर) को बताया। उसके बाद डॉक्टर ने 1 इंजेक्शन लगाया 3 दिन बाद जब उन्हें होश आया तो पता चला कि उनके साथियों ने टाइगर हिल पर अपनी जीत का झंडा लहरा दिया है तमाम साथियों की शहादत के बाद विजय के पलों ने खुशी की पराकाष्ठा पर पहुंचा दिया।
26 जनवरी 2000 को मात्र 19 वर्ष की आयु में सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव जी को, भारत के सर्वोच्च शौर्य अलंकरण परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया ।तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायण जी के हाथों द्वारा “परमवीर चक्र “विजेता का सबसे कम उम्र में इस सम्मान को पाना ,योगेंद्र सिंह यादव जी एवं उनके परिवार के लिए तो गौरवपूर्ण क्षण थे ही, साथ ही पूरे हिंदुस्तान को अपने इस टाइगर, वीर साहसी योद्धा पर फक्र है वह युवाओं की प्रेरणा है। और पूरा देश इस जिंदा शहीद के शौर्य और जज़्बे को सलाम करता है।
“रक्त में उबाल है तू ज़िंदा एक मिसाल है,
बारूदों की बारिश में सरहदों की ढाल है,
जोश तेरा बाण है तू निर्भयता का तीर है,
युद्ध तेरा मान है तू शूर है तू वीर है।
हिम्मत तेरी बढ़ती रहे खुदा तेरी सुनता रहे,
जो सामने तेरे अड़े तू खाक में मिलाए जा..
कदम कदम बढ़ाए जा खुशी के गीत गाए जा,ये ज़िंदगी है कौम की तू कौम पर लुटाए जा।”
जय जवान जय किसान
जय हिंद जय भारत।
भारत माता की जय..
Images courtesy: Shubham Sharma (great grandson of Maj KP Sharma, who led a mass revolt against British in Jabalpur following INA trials in Red Fort; Subham’s forefathers were in Azad Hind Fauz. He is a close associate of Padma Bhushan Col GS Dhillon’s family. Col Dhillon was tried in Red Fort, famous as INA Trials).