CAPFs, State Police, BSF के जवानों की बलिदान गाथा – फिल्म Wall of Valour
CAPFs और State Police के जवानों की बलिदान गाथा और कार्यप्रणाली पर बिन्दु-बिन्दु विचार करती कमसिन निर्देशका बीनू राजपूत द्वारा निर्मित वृत्तचित्र Wall of Valour का 15 अगस्त, 2017 को कैरियर प्याइंट गुरुकुल के प्रांगण में भव्य आयोजन के बीच प्रस्तुतीकरण ने दर्शकों के दिलों को छुआ भी और आंदोलित भी किया।
देशभक्ति के सरताज इन जाबाज सैनिकों की बलिदान गाथा व उनके परिवारों की खामोशियों को बीनू की कलम व कला की ताकत ने आवाज दी है। इसमें जहाँ बी.एस.एफ. की कार्यप्रणाली व कार्यशैली का जिक्र है वहीं पर इस तथ्य पर भी प्रकाश डाला गया है कि सैनिक जब युद्ध लड़ने जाता है, उसी वक्त से उसका पूरा परिवार भी युद्ध लड़ता है और उसके जाने के बाद उसके परिवार का युद्ध और भी दर्दनाक हो जाता है।
उस आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में श्री अभिनव कुमार (IPS) IG WQ BSF, Guest of honour में मेरे सहित, श्री कमल अरोड़ा Chairman CSNA, श्री सुरेंद्र शर्मा Film Actor|Director, श्री अशोक कुमार Chairman PPCT, श्री मति गीता फिलोस्फी प्रोफेसर और आयोजक श्री उमेद सिंह डायरेक्टर कैरियर प्वाइंट गुरूकुल स्कूल और श्री मति नीतू सैनी प्रिंसिपल कैरियर प्वाइंट गुरूकुल स्कूल शामिल थे|
फिल्में आज के युग का बहुत ही Strong/Powerful माध्यम है अपनी बात को express करने का| वीरों की शहादत की शौर्यगाथा को बहुत ही बेहतरी और भावुक ढंग से दर्शाया गया है| जो बीनु राजपूत की इस फिल्म Wall of Valour में दिखाई पड़ा| फिल्म में इमोशनल Factor बेहद मजबूत था| जितना मैं बीनू को जानती हूं वह भी बेहद भावुक इंसान हैं| वह हमेशा दूसरों के दु:खों को अपना दु:ख समझ कर कार्य करती हैं|
साहस और निडरता की उसमें कोई कमी नहीं हैं| जिसका प्रमाण वह अपने अतीत में कई बार दे चुकी हैं | जब वह एचएमवी कॉलेज जालंधर में छात्रा थी तो हर Activities में सबसे आगे रहती हैं | NCC Air wing में उसने नया मुकाम हासिल किया, कॉलेज की Best Student ऑवार्ड भी जीता | NCC में गणतंत्र दिवस परेड में भी भाग लिया और Best Turu Out का ऑवार्ड जीता|
Parasailing, Gliding, Aero-Modeling और न जाने कितने कई और Activities में भाग लेती थी| मिस एचएमवी का भी खीताब जीता. बचपन में भी वह बेहद Dedicated, Honest, Obedient and intelligent Student थी| इसकी Creativity सिर चढ़ कर बोलती थी, जो आज उसकी फिल्मों में भी दिखता है|
वह हर व्यक्ति के संघर्ष की respect करती हैं क्योंकि उसने खुद जीवन में बहुत संघर्ष किया हैं| मुझे याद हैं कि वह किस तरह से अपने परिवार और समाज से संघर्ष करके हमारे कॉलेज में पढ़ने आयी थी| क्योंकि उस समय की मानसिकता कुछ और थी जिसमें लड़कियों को पढ़ाना जरूरी नहीं समझा जाता था और यदि कोई लड़की बेहद तेज हो और Creative हो तो उसे चुप करके बैठा दिया जाता था| पर बीनू ने हिम्मत नहीं हारी|
अपने पूरे परिवार और रिश्तेदार और गांववालों से लड़कर, अपनी मां श्री मति कमलेश की मदद से कॉलेज में दाखिला ली और आज वह जिस मुकाम पर है उससे हम सबको और उसके परिवार को भी नाज हैं| बुराईयों से, समाज की घटिया सोच से लड़ना बीनू ने बचपन में ही सीख लिया था| M A Philosphy करने के कारण उसका फिल्मों के प्रति Philosophical Vision साफ दिखाई पड़ता है|
मैं Wall of Valour film screening में बीनू की पंजाब युर्निवसिटी में Philosophy की प्रोफेसर से मिली| मिसेज गीता जो बीनू के समय HOD Philosophy के पद पर नियुक्त थी| उन्होंने ने भी मुझे बताया कि बीनू वहां भी पूरी निष्ठा से बातों की गहराईयों को परखने और समझने की कोशिश करती थीं| हालांकि वह क्लास में सबसे चंचल विद्यार्थी भी थी| पर Subject की seriousness को भी अच्छे से समझती थीं | तो इस तरह के तेजस्वी विद्यार्थी यदि हर कॉलेज या स्कूल से निकलते रहें तो सोचिये उस गुरू का कितना मान बढ़ता हो जिन्होंने उसे पढ़ाया हो|
आज के ऊहापोह वाले युग में फिल्मों की भूमिका बढ़ती जा रही है। फिल्में खुली कामीन से देखा गया आकाश हैं। इस वृत्तचित्र में उन देशभक्तों का उल्लेख भी है, जो इन परमवीरों के परिवारों के प्रति अपना दायित्व निभाने के लिए कर्मठ हैं तथा तन-मन-धन से उनकी सेवा में संलग्न हैं। फिल्म स्टार अक्षय कुमार और क्रिकेट स्टार गौतम गंभीर की एंट्री व उनका सैनिकों के प्रति रूझान व जुड़ान फिल्म में एक अनूठी रंगत ताजगी व प्रेरणा का संचार करता है। रिसर्च आधारित इस वृत्तचित्र Wall of Valour में बी.एस.एफ.की सुंदर लोकेशनों को एक्सप्लोर किया गया है।
फिल्म कोलाज की एक अनूठी विधा को विकासत करती चलती है, जिसमें विविध रंगों से सरोबार करके अपनी बात को पूरी शिद्दत से कहने की कला सहज ही मंत्रमुग्ध कर लेती है। कमउम्र निर्देशिका बीनू राजपूत में एक स्पार्क है, जो आने वाले समय में उसे शिखर पर ले जाएगा। गौरतलब है कि पहले भी उन्हें उनके वृत्तचित्र बोर्न टू डांस के लिए जयपुर में आयोजित फिल्म फेस्टिवल में फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया है। बीस साल पहले उसकी टीचर होने के नाते मैंने उसके भीतर उमड़ते जज्वे की इसी तरह महसूस किया था। उम्मीद करते हैं कि बीनू राजपूत आगे भी इसी तरह सामाजिक सरोकार वाली फिल्मों का निर्माण करके जनचेतना पैदा करती रहेगी।